Sunday, June 29, 2008

फीचर लेखन


फीचर लेखन

बलदेव राज कालड़ा
सह निदेशक

समाचार–लेखन तथा संपादन पत्रकारिता के दो आधार हैं। समाचार–लेखन से जुड़ी एक अन्य विद्या है फीचर। फीचर जहाँ आधुनिक पत्रकारिता की अत्यन्त महत्त्वपूर्ण विधा है, वहीं साहित्य की भी नव–विकसित विधा बन चुकी है।
फीचर क्या है ? फीचर ऐसा रचनात्मक तथा कुछ–कुछ स्वानुभूति लेख है, जिसका गठन किसी घटना, स्थिति अथवा जीवन के किसी पक्ष के सम्बन्ध में पाठक का मूलत: मनोरंजन करने एवं सूचना देने के उद्देश्य से किया गया हो। (डेनियल आर विलियमसन, फीचर राइटिंग फार न्यूज पेपर्स) दरअसल यह अभिव्यक्ति का ऐसा रूप है जिसमें ज्ञान, कल्पना, यथार्थ, घटनाओं, चमत्कार, कौतूहल, समस्या आदि सभी कुछ भावना–प्रधान एवं रसमय गद्य बना हुआ रहता है दृश्यात्मकता इसका आवश्यक गुण है।
फीचर के लक्षण तथा स्वरूप – फीचर स्थिति का विहंगावलोकन ही नहीं करता, वह प्रश्नों का उत्तर भी देता है और अज्ञात का ज्ञान भी कराता है। फीचर मानो किसी घटना की दूरबीन से जाँच करता है। अच्छे फीचर के गुणों की जब बात करते हैं, तो उसके मूल चार आधारों पर हमारा ध्यान जाना आवश्यक है ये हैं जिज्ञासा, सत्यता, मानवीय भावना, चित्रात्मकता, स्पष्ट विश्लेषण।
डा. रामचन्द्र तिवारी ने कहा है कि फीचर लेखक अपने आँख–कान, भावों, अनुभूतियों, मनोवेगों और अन्वेषणों का सहारा लेकर उसे रुचिकर, आकर्षक और हृदयग्राही बनाता है (सम्पादन के सिद्धान्त, पृष्ठ 105)
फीचर के प्रकार – श्री विवेकी राय कहते हैं कि फीचर का वृत्त इतना विशाल है, जीवन की ही भांति वह इतना व्यापक है कि उसमें समस्त विषयों का समावेश हो जाता है।
विषयों की विविधता और उसके विस्तार की दृष्टि से फीचर का वर्गीकरण करें, तो कुछ निम्नलिखित प्रकार के वर्ग निर्धारित किए जा सकते हैं –
1.विशिष्ट घटना – जैसे – युद्ध अकाल, दुर्घटना, दंगा, आन्दोलन आधारित फीचर।
2.राजनीतिक घटनाओं पर आधारित फीचर।
3.सामाजिक समस्याओं को उजागर करने वाले फीचर।
4.वाद–विचार सम्बन्धी चिन्तनात्मक फीचर।
5.आंचलिक फीचर।
6.व्यक्ति विशेष के फीचर।
7.समाचाराधारित फीचर।
8.मेला, मनोरंजन, सभा, यात्रा सम्बन्धी – सांस्कृतिक फीचर।
9.महत्त्वपूर्ण साहित्यिक प्रकाशन आदि फीचर।
10.(सोद्देश्य फीचर )खोजपरक फीचर।
फीचर की रचना प्रक्रिया– फीचर लेखन प्रक्रिया का पहला बिन्दु तो है विषय चयन। फीचर का विषय ऐसा होना चाहिए जो लोक – रूचि का हो, लोक–मानस को छुए, पाठकों
में जिज्ञासा जगाए और कोई नई जानकारी दे। सामान्य से सामान्य विषय को चुना जा सकता है लेकिन लेखक को चाहिए कि वह उसे इस कोण से देखे कि इस विषय की उपयोगिता क्या है, पाठक उसे क्यों पढ़ेगा, इसका समसामयिक महत्व क्या है, इसमें क्या नया है या दिखाया जा सकता है।पत्र–पत्रिका के पाठक किस वर्ग के हैं? किस रुचि के हैं ?
रचना प्रक्रिया का दूसरा बिन्दु है – सामग्री संकलन। इसके लिए लेखक को विषयवस्तु के निकट जाना होता है। घटना स्थल, पर्यटन स्थल, मेला स्थल, रीति–रिवाज, रहन–सहन, वस्त्राभूषण आदि के अध्ययन के लिए उस समाज या स्थान विशेष पूरी तैयारी के साथ जाना होता है। फीचर लेखन के लिए रचना–प्रक्रिया के क्रम में जिन बातों से सुविधा हो सकती है –
1.आरम्भ – फीचर का आरम्भ प्राय: एक खाका बनाकर करना चाहिए –
(अ).किसी आकर्षक उद्धरण, काव्य पंक्तियों, किसी प्रश्न शृंृखला, दृष्टांत आदि से फीचर का आरम्भ किया जाए तो वह अच्छा बन सकताहै।
(ब).व्यक्ति के रेखाचित्र, परिचय, प्राकृतिक दृश्य, घटनांश, सम्बोधन से भी आरम्भ किया जा सकता है।
2.मध्य – मध्य में मूल विषय का उद्घाटन करना चाहिए। फीचर के लिए तो विश्वसनीयता सर्वप्रथम अनिवार्य है। सत्य को किस तरह हम सामने ला रहे हैं यह देखना जरूरी है। फीचर का मध्य भाग संतुलित, विवेचना और विश्लेषण से युक्त होना चाहिए। श्री डी. एस. मेहता कहते हैं कि फीचर में उस तथ्य को उभारा जाता है, जो महत्त्व का होते हुए भी स्पष्ट नहीं होता उसका प्रस्तुतीकरण ही फीचर के व्यक्तित्व, उसकी शक्ति और उसके औचित्य का बोध देता है। अध्ययन, अनुसंधान और साक्षात्कारों के बल पर फीचर में तथ्यों का विस्तार किया जाता है।
3.अन्त – किसी भी फीचर का अंतिम भाग एक तरह से सारांश होता है। यह आवश्यक नहीं कि लेखक निष्कर्ष गिनाए। वह नए विचार सूत्र दे सकता है जो पाठकों को सोचने को बाध्य करे।
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