Friday, July 25, 2008

लघुकथा : प्रकार, प्रविधि और भाषा

लघुकथा : प्रकार, प्रविधि और भाषा

आकार से प्रकार की ओर

गौतम सान्याल

 

हिन्दी में लघुकथा के 'आकार' पर बहुत कुछ लिखा जा चुका है, लेकिन मुझे लगता है कि प्रकार तय हो जाए तो आकार भी निश्चित दिखाई देगा।

यहाँ इतना जोड़ देने में कोई हर्ज नहीं है कि 'लघु' होना या नन्हा होना गौरैया का दुर्भाग्य है। गौरैया स्वयं में जीवित ओर सम्पूर्ण है। ध्यातव्य है कि इस जीवन में या कला जगत में जो कुछ भी महान या महत्त्वपूर्ण हैवह लघुकथा या दीर्घता के अनर्थक वितर्क से परे होता है। लघु होनाखंडित होना या संक्षिप्त होना नहीं है। लघुकथा परजीविता भी नहीं है। एक तारे के विखंडन से (सिफीड सिद्धांत) इस सौर जगत की सृष्टि हुई है तो क्या पृथ्वी, चाँद या अन्य ग्रहोंउपग्रहों का अपना कोई गुरुत्वाकर्षण नहीं, अपना कोई प्रकार नहीं?

सीधीसी बात यह है कि एक कलामन सदैव स्वयं से बाहर निकलना चाहता है। वह दूसरों से संपर्क साधना चाहता है। कलानिजस्वता का अतिक्रमण है। इस  निजस्वता से अतिक्रमण की प्रक्रिया तभी पूरी होती है जब एक कलामन दूसरों की भी 'स्वयं से निष्क्रमण' में सक्रिय और कलात्मक मदद  करता है। लेकिन कलामन के इस स्वयं से निष्क्रमण का कोई निर्दिष्ट व्याकरण नहीं है। सांस्कृतिक संपर्क एक जैविक और सामाजिक प्रक्रिया हैजिसे मनुष्य किसीकिसी स्तर पर गढ़ ही लेता है। कला का प्रारूप या आकार निष्क्रमण की परिधि के आधार पर निश्चित नहीं होता। उल्लेखनीय है कि संपर्क एक मानसिक अस्थिरता है जो कि तरल है और जिसका आयतन तो निश्चित है, मगर आकार नहीं। संक्षेप में कलामन की अन्तस् अस्थिरता से 'प्रकार' का संबंध 'आकार' की अपेक्षा अधिक हुआ करता है। आकार तो परिणाम है, जबकि प्रकार का रहस्य किसी कृति की नाभिकीयनाल में निहित होता है।

प्रश्न उठता है कि किसी देशजाति के इतिहास के किस मोड़ पर अधिकाधिक सृजित होते हैं लघुकथाप्रकार? ये कैटेलिस्ट उत्प्रेरणाएँ क्या है जो लघुता के सृजन की प्रक्रिया को गुणवत्ता और परिमाण की दृष्टि से तेज कर देती हैं? अक्सर लोग लघुकथाओं के सृजन का अधिकतर श्रेय  औद्योगीकरण या विज्ञान के यांत्रिकीकरण या हमारे उलझे हुए आज के बाजारू जीवन को देते हैं। ये लघुकथा को लघुमानव की प्रतिक्रिया के रूप में चिहित करना चाहते हैं। वे भूल जाते हैं कि लघुकथा स्वयं में विज्ञान ही हैअर्थात विशेष ज्ञान । वे भूल जाते हैं जहाँ तक 'प्रकार' का प्रश्न हैपंचतंत्र की कथाएँ हों या जातककथाएँ, कथासरित्सागर हो या अरेबियन नाइट्स की सह कथाएँये अपने आप में लघुकथाएँ ही हैं। और तो और, महाभारत भी अपने आप में  अजस्र लघुकथाओं का अक्षय समाहार ही है। मुझे तो लगता है कि प्रकार की दृष्टि से रामायण अगर महाकाव्य है तो महाभारत 'ग्रेड चेन पैटर्न' की अनवरत लघुकथाओं की अनंत  शृंखला है।

लघुकथा के उन्मेष पर हमारा ध्यान टिका हो तो रामायण और महाभारत के देशसमाज,आर्थिकसामाजिक अधिरचना का अन्तर अवश्य दिखेगा और प्रकार भेद के चिह्नीकरण के सन्दर्भ में बात यहीं  शुरू की जा सकती है।

उल्लेखनीय है कि लघुकथाओं का जन्म तब अधिक होता है जब किसी जाति के जीवन से महाकाव्य विलुप्त होने लगते हैं। यह तब भी हुआ था और इस शताब्दी के मध्य दशकों में भी हुआ है। ध्यातव्य है कि तीनचार दशक पहले भारतीय जीवन के परिप्रेक्ष्य में या मनीषा की परिधि के जिसजिस कक्ष में (मसलन बांग्ला, हिन्दी, मराठी आदि) महाकाव्य विलुप्त होने लगेवहाँवहाँ नई चेतना से संपन्न लघुकथाएँ छा गई हैं। ठीकठीक कहें तो महाकाव्य विलुप्त नहीं होते बल्कि विखंडित हो जाते हैं और इसका इतिवृत्त उपन्यासों में (प्राचीीन युग में नाटकों में), प्रगीत लंबी कथात्मक कविताओं में (राम की शक्तिपूजा, असाध्य वीणा, अँधेरे में आदि)और इसका नीतिशास्त्र लघुकथा के रूप में सिमट जाता है। इस तरह लघुकथा अपने आप में प्रेस्क्रिपप्टिव लिटरेचर ही है जो सदैव ग्रहण और वर्जन (डू या डोंट) का निदे‍र्श देती है। लघुकथा शिवम् का लघुतर आख्यान है जो शुभअशुभ कीी विभाजक रेखा पर जन्म लेती। वह नैतस की शून्यबिन्दु हैं; पक्षविपक्ष का वह नोमेंस लैंड है जहाँ कृष्ण अर्जुन को गीता का उपदेश देने ले गए थे।

लघुकथाएँ किसी अस्थिर समाज में अधिक उपजती हैं जिसमें भौतिक उत्पादन के साधन और मानसिक उत्पादन के साधनों में तीव्र संघर्ष दिखाई देता है। जब जाति की मनीषा में वह महाकाव्यिकआलोचनात्मक विवेक नहीं होता है जिसके आधार पर वह नई राह के निर्माण में संलग्न हो सके, जब यह जान जाती है कि ये पुराने रास्ते इसे कहीं भी नहीं ले जाएँगे, यह दुनिया उसके लिए बेहद छोटी होगी।

स्पष्ट कहें तो जब पुराने नीतिशास्त्र के समस्त उपयोगी दिशाफलक उत्पाटित होकर हमारे चरणों के नीचे प्रत्यक्ष पड़े होते हैं, जब किसी देश की समस्त राजनैतिक संस्थाएँ अपना भविष्य खो चुकी होती हैं, जब परम्पराओं का उपयोग या प्रयोग की दिशाएँ नहीं सूझती, जब मूल्यहीनता का बोध प्रतीति से प्रत्यय बन जाता है, जब किसी देश का व्यापारी वर्ग सन्तुष्ट, लेखनकर्मी उदास और युवावर्ग बूढ़ा दिखाई देता है, जब गणतंत्र पूँजीपतियों की खोज बनचुका होता है, जब हमारे पारंपरिक आख्यान मिथक हीन प्रतीत होने लगते हैं, जब हमारी पारंपरिक लोककलाओं को बाजारू उपभोग के प्रोडक्ट के रूप में 'उन्नत' किया जाता है, जब हमारे न्यूक्लियसपरिवार से (इलेक्ट्रोन पापा, पॉजिट्रोन मम्मी और न्यूट सन्तान) कथावाचक दादीनानीफूफीमौसी गायब होने लगते हैं, तब, लघुकथाओं का अधिकतर सृजन होने लगता है।

 

प्रविधि

लघुकथा हठात् जन्म नहीं लेती, अकस्मात् पैदा नहीं हो्ती। दूसरे शब्दों में कहें तो लघुकथा तात्क्षणिक प्रतिक्रिया का परिणाम नहीं होती। जब कोई कथ्यनिर्देश देर तक मन में थिरता है और लोकसंवृत में अखुआ उठता है  ,तब जाकर जन्म ले पाती है लघुकथाजैसे सीपी में मोती जन्म लेता है। जब कोई धूलकण या फॉरेन बॉडी बाहर से सीपी में प्रवेश करती है तो उसे घेरकर सीपी में स्राव शुरू हो जाता है। एक दीर्घकालिक प्रक्रिया के तहत वह धूलिकण एक ट्यूमर के रूप में मोती का रूप ग्रहण कर लेता है । कहना न होगा कि इस सहजात जैव प्रक्रिया के तहत सीपी को एक गहरी और लंबी वेदना से गुजरना होता है। आदमी विवश होकर ही लिखता है जैसे कोई झरना विवश होकर अन्तत: फूट निकलता है। यहाँ तक तो एक कविताकहानी या लघुकथा में कोई विशेष फर्क नहीं। फर्क इतना है कि साधारणत: एक लघुकथा का लगभग अंतिम प्रारूप व्यक्त होने के पहले ही अपना रूपाकार ग्रहण कर लेता है। यह तथ्य क्रोचे का गड़बड़ाता नहीं है। कहना बस इतना है कि जीवन महज एक तथ्य नहीं हैयह अपने आप में कथ्य भी है। जब जीवन के तथ्य और कथ्य एकमेक होक गद्य के प्रारूप में अन्वितसंक्षिप्तियों में प्रकट होते हैं तो उसे लघुकथा कहते हैं। 

 

शर्तें

लेकिन 'मोती' का प्रारूप ग्रहण कर लेने से ही लघुकथा की सृजनप्रक्रिया संपन्न नहीं हो जाती। इसके बाद एक सूक्ष्म कलाजन्यशल्यचिकित्सा अपेक्षित है। इसके बाद अत्यंत सतर्कता बरतते हुए सीपी से मोती को निकालना होता है। जो सीपी से मोती को नोचकर निकालते हैं वे हत्यारें हैं, कसाई हैं, बनिए हैं, शीघ्रस्रावी हड़बडि़ए हैं। उन्हें किसी भी दृष्टि से लघुकथाकार नहीं कहा जा सकता।

क्हने का आशय यही है कि लघुकथा की सृजनप्रक्रिया दीर्घकालिक है इसीलिए यह देर तक और दूर तक जीवित रहती है। मेरा तो यह मानना है कि कहानी की तुलना में लघुकथा में निश्चित तौर पर दीर्घकाल तक बने रहने की क्षमता अधिक होती है। काल के चिरंतन प्रवाह में गीता का 'समग्र' विस्मृत हो जाता है, महाकाव्यों का सुखात्मक इतिवृत्त विलुप्त हो जाता है, पुराणों के 'आख्यान' (नैरेटिव डिस्कोर्स) धूमिल पड़ जाते हैंये लघुकथाएँ ही हैं जो मानव सभ्यता या संस्कृति में देरदूर तक चल पाती हैं, टिकठहर जाती हैं।

लघुकथा के प्रस्थानबिन्दु में विवेक का विस्फोट (एन एक्सप्लोजन आफ विज़डम) दूसरी अनिवार्य शर्त है। ऐसा विस्फोट जो बिजली की कौंध की भाँति क्षणभर में, क्षणभर के लिए ही सही चेतना के समस्त आकाश को उजागर कर देता है, समस्त कथावृत्त को उद्भासित कर देता है। लघुकथा चूँकि कथा भी हैयह हमें मात्र हतवाक् ही नहीं करती, मोहित भी कर देती है। जिस लघुकथा में विवेक नहीं होता, वह पशुओं का खाद्य है।

शैली को तलाशें तो यह 'विवेक का विस्फोट' अपने आप मे तराशा हुआ व्यंग्य ही है। लघुता नहीं, घनत्वलघुकथा की एक और शर्त है और यह 'घनत्व' भाषा पर उतना आधारित नहीं होता बल्कि व्यंग्य के दर्शन पर होता है। घनत्व की अवस्थिति, दृष्टि में नहीं बल्कि दर्शन में ही होती है। इस दर्शन का सृजन व्यक्तिगत विद्रूप की भंगिता या कृत्रिम भाषिक कौशल से उपस्तर के अतिक्रमण के बाद ही सम्भव है।

लघुकथा के सौन्दर्यशास्त्र का पहला सूत्र यह है कि यह विरोध की कला है, प्रतिरोध का रचना कौशल है, विरुद्ध का कथ्य है, विद्रूप का कौशल हे। यह असत्य और अशुभ पर कथात्मक प्रहार का संक्षिप्त नाद है। लघुकथाएँ पतनशील और जर्जरित सामाजिक अधिरचना के विरुद्ध नवीन और जीवन्त विवेक के संघर्ष की दास्तान को लघु कलेवर में प्रस्तुत करती हैं जीवन एक संघर्षशील श्रम है और कलागतसृजन उसके मर्म का उद्घाटन है। लघुकथाएँ उन मार्मिक उद्घाटनों का संक्षिप्त कथात्मक प्रकार है।

 

भाषा

लघुकथा न तो कहानी की भूमिका है और न ही परिशिष्ट । कहानी उपस्थित समाज का आख्यानपरक ब्लूप्रिंट है जबकि लघुकथा सम्भावित समाज का कथाकलीनिर्देश । कहानी अगर नृत्य है तो लघुकथा एक सार्थक भावमुद्रा। लघुकथा कथ्य की कोख में अँखुआया हुआ मानवता का वह कथात्मक क्षण है जो हमें युगयुग तक नई प्रेरणा और उत्तेजना प्रदान करता है। ध्यातव्य है कि इस विधाप्रकार की सारी ऊर्जा कालातीत बनने के प्रयत्न में खप जाती है। एक ही कथ्य, परिधि से केन्द्र की ओर चले तो लघुकथा और केन्द्र से परिधि की ओर चले तो कहानी का जन्म हो सकता है बशर्ते हम व्यक्त करने और व्यंजित होने के फर्क को ध्यान में रखें। लघुकथा कहानी की तरह 'कथा' को व्यक्त नहीं करती, व्यंजित कर देती है। दोनों में एक भाषागत अन्तर, विश्लेषण और संश्लेषण का भी दिखाई देता है ।

लघुकथा की भाषा के रूपकल्प का निर्धारण सबसे पेचीदा समस्या हैअत: हमें अत्यन्त सतर्कता बरतते हुए इस सन्दर्भ में समग्रता से विचार करना चाहिए। साहित्य भाषा की परिघटना  है और भाषा शब्दों का अभिकृत्य है। संक्षेप में कहें तो हमारा सम्पूर्ण वाङ्मय शाब्दिक अवबोध पर ही टिका हुआ है। अतएव हमें शब्दप्रयुक्त(प्रोजेक्शन) पर ध्यान देना चाहिए और वे विभाजक रेखाएँ ढूँढ़ निकालनी चाहिए जो कविताकहानी की भाषा से लघुकथा की भाषा को अलगाती है।

लघुकथा की भाषा अपरिसीम भाषा है। इसमें पंचतंन्त्र का टेक्श्चर, बौद्ध जातक कथाओं का स्ट्रक्चर, कविता की तिर्या, संस्कृत लोकों की अन्वित अभिव्यक्ति, महाकाव्य का वि्वेक, लोकगीतों की लय, स्थापत्य कला का रेफरेंशियल मूड, पेंटिग्स का पिक्टोरियलसब चाहिए। जहाँ तक अर्थ की अभिव्यंजना का प्रश्न है, लघुकथा की शब्दअन्विति कुछ कहा और कुछअनकहा की घटित चतुराई पर आधारित नहीं, बल्कि क्रिस्टलभाषा होती है जिस पर तनिक प्रकाश पड़ते ही एक साथ कईकई अर्थान्वितियाँ झिलमिला उठती हैं। उसकी यह बात कविता से मिलतीजुलती है। अन्तर यह है कि कविता के लिए 'भगीरथी' शब्द उचित है ,जबकि लघुकथा के लिए 'गंगा' एक आदर्श शब्द है जो एक लौकिक नदी, एक पवित्र तरल प्रवाह, एक दिव्य देवी और असंख्य मिथकों को एक साथ अभिव्यंजित करने में समर्थ है। 'भागीरथी' मिथक को 'व्यक्त' करता है जबकि 'गंगा' शब्द उसी मिथक को अभिव्यंजित करता हैं अन्तर इस कोण से भी दिखता है कि कविता की ये अर्थान्वित झिलमिलाहट के दिशाफलक प्रतीकार्थों और बिम्बों को अधिसूचित करते हैं जबकि लघुकथा के शब्द एक विशिष्ट कथ्यनिर्देश को।

लघुकथा का शब्द अकेला 'शब्द' होता है। उसका कोई पर्यायवाची नहीं होतापहाड़ी पर अकेले मंदिर की भाँति जो दूर पर दिखता है, जो दृश्य भी है और दृष्टांत भी। ध्यान से देखे तो 'शीर्षस्थ' नहीं, बल्कि 'शीर्षज्ञ शब्द' लघुकथा के लिए आदर्श होता है।

लघुकथा की भाषा में कथ्य की अंगीकृत अनुरूपता होती है, कविता की तरह अस्वीकृत प्रतिरूपता नहीं। लघुकथा कविता की तरह अगाध का अवगाहन नहीं है, वह नैतिक अवबोध का स्पष्ट प्रस्तुतीकरण है। इसकी भाषा में निहित अन्तर्ध्वनितअनुगूँज एक स्पष्ट कथात्मक परिघटना का संकेत देती है।

यह तथ्य निर्विवाद है कि कविता ही नए शब्दों को जन्म देती है, गद्य तो बस उनकी परवरिश करता है, उन्हें निभाता है। लघुकथा उस नए प्रजन्म की नवीन अर्थछायाओं को कथा की हथेली की सुरक्षा प्रदान करती हैजीवन बीमा के विज्ञापन के एंब्लेम की तरह ।

कहानी की भाषासमकालीन सोशलग्रामर के द्वारा  निर्धारित होती है, क्योंकि कहानियाँ सदैव समकालीन श्रोताओंपाठकों के लिए रची जाती हैं। इस दृष्टि से देखें तो कविता कालतीत संवाद है। लघुकथा की भाषिक स्थिति इन दोनों के मध्य है। आख्यान के स्तर पर यह समकालीन होती है जबकि संवाद के स्तर पर कालातीत। लघुकथा की भाषा पूरे दायित्व के साथ समकालीन भाषिक अवबोध को नकारती है और इसी प्रयत्न में यह कविता के करीब पहुँचती प्रतीत होती है।

'एक था राजा, एक थी रानी, दोनों मर गएखत्म कहानी'–यह कहानी की भाषा नहीं बल्कि कविता की भाषा है। कहानी की भाषा यह है कि, राजा रानी से बेहद प्यार करता था, रानी बीमार थी और एक दिन राजा शिकार से लौटा तो उसने पाया कि रानी मर चुकी हैऔर राजा उसके शोक में मर गया। कहानीपन 'जाड़े की उदास शाम' के चित्रण में है, जब राजा आखेट से लौट रहा था और रहरहकर उसे आज के आखेट का वह दृश्य याद आ रहा था कि किस तरह वह मासूम सिंह शावक अपनी माँ के निष्प्राण शव को चाट रहा था। राजा शिकार से महल में लौटा तो देर तक अपनी प्रियतमा की निर्जीव देह के सिरहाने बैठा रहा। फिर अचानक उठकर उसने आदेश जारी किया कि आज से राज्य में निरीह वन्य प्राणियों का शिकार, दंडयोग्य अपराध है। दूसरी सुबह उसे मृत पाया गया।

इस कथ्यनिर्देश से सिनिसिज्म (दृश्यपरकता) को निकाल दें, इससे नैरेटिव डिस्कोर्स को पृथक् कर दें और इसी को एक परिदृश्यात्मक चित्रात्मकता में प्रस्तुत करें तो यही एक लघुकथा बन सकती है। मैंने अवधी का एक लोकगीत सुना है जिसमें ऊँची अटारी पर बैठी हुई कौशल्या माता से एक हरिणी रोरोकर शिकायत करती है कि किस तरह उसके पुत्रों ने एक अदद मृगछाला के लिए उसके परम प्रिय हरिण का वध कर दिया है। कौशल्या जवाब नहीं दे पाती, अटारी से हट जाती है और अशांत मन को शांत करने के लिए ध्यान के निमित जिस पर बैठती है वह मृगछाला ही होती है। यह लघुकथा है।

अत: कहना चाहूँगा कि लघुकथाएँ अवबोध की त्वरित प्रतिक्रिया नहीं होती, यह हठात् अनुभव का आकस्मिक उद्गार नहीं हैलघुकथाएँ सुनियोजित घटित के ऊपर नैतिक शब्दों की टेराकोटा निर्मिति हैं लघुकथाएँ  उदारतम कथात्मक शब्दों की कृपणतम प्रस्तुति है।

लघुकथा की भाषिकसंकल्पना में एक अतिरिक्त कलापरक संयोजन सर्वथा अपेक्षित है और यह संकल्पना दिक या काल को ही नहीं, शब्दों के पारंपरिक अवबोध और मिथकीय सन्दर्भ को भी चिति करती है। हम गंगा के लिए 'जल' और तुलसी के लिए 'दल' शब्द का प्रयोग करते हैंपानी, नीर या पत्ती नहीं, 'आकाश' केन्द्रित शब्दों को ही लें 'गगन' है उच्चता (गगनस्पर्शी आलिका.....नभचुंबी या आकाशचुंबी क्यों नहीं?) नभ है वायु(नभचर),अम्बर है पृथ्वी का परिधान, अन्तरिक्ष इंटर प्लेनेटरी स्पेस, आसमान है विस्तृत और रंग, आकाश है गहराई; शून्यता और व्यापकता। ऐसा क्यों? इसी प्रश्न के उत्तर में लघुकथा की कालातीत और विशेष व्यंजित भाषा कास रहस्य छिपा हुआ है।

 

 

Saturday, July 12, 2008

नवीनतम तकनीक

ihndI  ]nnat hao [sako ilae ihndI iXaxakaoM kao Aalasya ka pir%yaaga krko saik`ya haonaa pD,ogaa ‚navaInatma tknaIk sao jauD,naa pD,ogaa  AQyayana kao mah%%va donaa pD,ogaa .yaid eosaa nahIM kroMgao tao ihndI ka Aiht haogaa .

ramaoSvar kambaaoja

Sunday, July 6, 2008

हिंदी : केन्द्रिक:कक्षा–11

हिंदी ;केन्द्रिक

कोड सं. 302

कक्षा–11 पूर्णांक–100

(क) अपठित बोध ;गद्यांश और काव्यांशबोध 10 +5=15

(ख) रचनात्मक लेखन ;कामकाजी हिंदी और रचनात्मक लेखन- 25

(ग) पाठ्य पुस्तक : आरोह ;भाग–1 > 20+15 =35

पूरक पुस्तक : वितान ;भाग–1> 15

(घ) मौखिक अभिव्यक्ति 10

 

क अपठित बोध : 15

1 काव्यांश बोध: ;काव्यांश पर आधारित पाँच लघूत्तरात्मक प्रश्न- 05

2 गद्यांश बोध: ;गद्यांश पर आधारित बोध प्रयोग, रचनांतरण, शीर्षक आदि पर लघूनरात्मक प्रश्न -10

 

(ख) रचनात्मक लेखन : ;कामकाजी हिंदी और रचनात्मक लेखन 15+10 =25

रचनात्मक लेखन पर दो प्रश्न

3   निबंध- 10

4   कार्यालयी पत्र -05

5 निर्धारित पुस्तक 'अभिव्यक्ति और माध्यम' के आधार पर जनसंचार की विधाओं पर दो प्रश्न

  प्रिंट माध्यम ;समाचार और सम्पादकीय-}5

  रिपोर्ट/आलेख}

6 फीचर लेखन ;जीवनसंदर्भों से जुड़ी घटनाओं और स्थितियों पर- 05

ग आरोह ;काव्यभाग– 20 अंक, गद्यभाग–15 अंक= 35

                  काव्यभाग

7 दो काव्यांशों मे से किसी एक पर अर्थग्रहण के चार प्रश्न ;2+2+2+2= 8

8 काव्यांश के सौंदर्यबोध पर दो प्रश्न ;3+3= 06

9 कविता की विषयवस्तु पर आधारित तीन लघूत्तरात्मक प्रश्न ;2+2+2= 06

                  गद्यभाग

10 दो में से एक गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधित तीन प्रश्न ;2+2+2= 06

11 पाठों की विषयवस्तु पर आधारित चार में से तीन बोधात्मक प्रश्न ;3+3+3= 09

 

 

                  वितान भाग : 1. >15

12 पाठों की विषयवस्तु पर आधारित चार में से तीन लघूनरात्मक प्रश्न ;3+3+3= 9

13 विषयवस्तु पर आधारित दो में से एक
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कक्षा ग्यारहवीं

विषय हिन्दी ;केन्द्रिक

कोड सं 302

समय: 3 घण्टे                                                पू्र्णांक : 90

खण्ड '' (अपठित बोध)

1.निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गऐ प्रश्नों के उत्तर दीजिए

प्रश्न चिह्ननोंे में उठी हैं

भाग्य सागर की हिलोरें।

आँसुओं से रहित होंगी

क्या नयन की नमित कोरें?

जो तुम्हें कर दे द्रवित, वह अश्रुधारा चाहता हूँ।

मैं तुम्हारी मौन करुणा का सहारा चाहता हूँ।

जोड़कर कणकण पण

आकाश ने तारे सजाए।

जो कि उज्ज्वल हैं सही

पर क्या किसी के काम आए।

प्राण! मैं तो मार्गदर्शक एक

तारा चाहता हूँ।

मैं तुम्हारी मौन करूणा का सहारा चाहता हूँ।

(क)मनुष्य की आँखों में आँसुओं के क्या कारण है? 2

(ख)आकाश को कृपण क्यों कहा गया है? वह क्यों किसी के काम नहीं आ सकता? 2

(ग) 'भाग्यसागर की हिलोरे' में कौन सा अलंकार है ? 1

2.निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए ।2+2+2+2+2=10

मैं क्या था, इस विषय का ज्ञान मेरे मित्रों और हितैषियों को बहुत ही कम है। उन्होंने मुझे अनेक पत्र लिखे और उलाहने दिए हैं। वे चाहते हैं कि मैं अपनी जीवनकथा अपने ही मुँह से कह डालूँ। पर पूर्ण रूप से उनकी आज्ञा का पालन करने की शक्ति मुझमें नहीं है। अपनी कथा कहते संकोच होता है, उसमें तत्व भी तो नहीं। उससे कोई कुछ सीख भी तो नहीं सकता। तथापि जिन सज्जनों ने मुझे अपना कृपापात्र बना लिया है, उनकी आज्ञा का उल्लंघन भी धृष्टता होगी। अतएव मैं अपने जीवन से संबंध रखने वाली कुछ बातें सूत्र रूप में सुना देना चाहता हूँ।

नौकरी छोड़ने पर मेरे मित्रों ने कई प्रकार से मेरी सहायता करने की इच्छा प्रकट की। किसी ने कहा – 'आओ, मैं तुम्हें अपना प्राइवेट सेक्रेटरी बनाऊँगा।' किसी ने लिखा–''मैं तुम्हारे साथ बैठकर संस्कृत पढ़ूँगा।'' किसी ने कहा– 'मैं तुम्हारे लिए छापा खाना खुलवा दूँगा।' पर मैंने सबको अपनी कृतज्ञता की सूचना दे दी और लिख दिया कि अभी मुझे आपके सहायतादान की विशेष आवश्यकता नहीं। मैंने सोचाअव्यवस्थितचित् मनुष्य की सफलता में सदा संदेह रहता है। क्यों न मैं अंगीकृत कार्य ही में अपनी सारी शक्ति लगा दूँ। प्रयत्न और परिश्रम की बड़ी महिमा है। अतएव 'सब तज हरि  भज' की मिसाल चरितार्थ करता हुआ इंडियन प्रेस प्रदत्त कार्य ही में मैं अपनी शक्ति खर्च करने लगा। जो थोड़ा बहुत अवकाश कभी मिलता तो उसमें अनुवाद आदि का कुछ काम और करता था।

(क)लेखक अपनी जीवनकथा क्यों नहीं लिखना चाहता था?

(ख) नौकरी छोड़ने पर लेखक के मित्रों ने किस प्रकार सहायता करनी चाही?

(ग)'मैंने सोचा अव्यवस्थितचित् मनुष्य की सफलता में सदा संदेह रहता है।'–आशय स्पष्ट कीजिए।

(घ)नौकरी से इस्तीफा देने के बाद लेखक ने क्या सोचकर इंडियन प्रेस के काम में सारी शक्ति लगा दी?

ङ) लेखक को अपनी जीवन कथा लिखने की प्रेरणा किनसे मिली? उपयु‍र्क्त गद्यांश के लिए कोई सटीक शीर्षक दीजिए।

3.निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर निबंध लिखिए–10,

 (क) वर्तमान युग और कम्प्यूटर

(ख) नशीले पदार्थ और युवा पीढ़ी

(ग) भारतीय किसान की स्थिति

(घ)आजीविका और शिक्षा नीति।

4. अपने नगर के स्थानीय समाचारपत्र के सम्पादक के नाम पत्र लिखिए और बताइए कि नगर में बिजली की कटौती से भीषण गर्मी में आम जन जीवन किस तरह प्रभावित हो रहा है। साथ ही अपनी ओर से कुछ समाधान भी सुझाइए। 5

अथवा

महाप्रबंधक, मानव संसाधन विभाग, इंडिया केमिकल्स लिमिटेड दिल्ली को विपणन अधिकारी पद हेतु एक आवेदन पत्र लिखिए।

              

5-(क)उल्टा पिरामिड किसे कहते हैं? 1

(ख)अंशकालिक पत्रकारिता से आप क्या समझते हैं? 1

(ग) समाचार के किन्हीं दो माध्यमों के नाम लिखिए। 1

(घ) 'संचार' के दो कार्यों का उल्लेख कीजिए।1

(ङ) 'सम्पादकीय पृष्ठ' किसे कहा जाता है? 1

6. पेट्रोलियम उत्पादों की बढ़ती कीमतों पर एक फीचर लिखिए। -5

 

7.निम्नलिखित काव्यांश पर आधारित पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए। 2x4=8

कहाँ तो तय था चिरागाँ हरेक घर के लिए

कहाँ चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए।

यहाँ दरख्तों के साए में धूप लगती है।

चलो यहाँ से चलें और उम्र भर के लिए

()'दरख्तों के साए में धूप लगती है'– पंक्ति का अर्थ स्पष्ट कीजिए।

()कवि कहीं और जाने की बात क्यों कर रहा है?

()'चिराग' से कवि का क्या अभिप्राय है?

() यह सारे शहर या घर को हासिल क्यों नहीं हुआ?

अथवा

अंधकार की गुहा सरीखी

उन आँखों से डरता है मन

भरा दूर तक उनमें दारूण

दैन्य दु:ख का नीरव रोदन

वह स्वाधीन किसान रहा

अभिमान भरा आँखों में इसका

छोड़ उसे मँझधार आज

संसार कगार सदृश वह खिसका।

() कवि और कविता का नाम लिखिए।

() कवि का मन किन आँखों से डरता है और क्यों?

() किसान की आँखों में किस बात का स्वाभिमान भरा है?

()कवि ने संसार के लोगों पर क्या व्यंग्य किया है?

8.निम्नलिखित काव्यांशों के सौन्दर्य बोध पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। 3+3=6

एकै पवन एक ही पानी एकै जोति समाना।

एकै खाक गढ़े सब भाड़ै एकै कोहरा साना

क()सिद्ध कीजिए कि काव्यांश में अद्वैत ब्रह्म का प्रतिपादन हुआ है।

;(ख) कोहरा एवं भाड़ै का प्रतीकार्थ स्पष्ट करते हुए पंक्ति में निहित अलंकार का नाम लिखिए।

9.निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए ।2+2+2=6

(क)अक्क महादेवी के वचन में ईश्वर से क्या प्रार्थना की गई?

(ख)मीरा समाज में प्रचलित परंपरागत मान्यताओं के विरुद्ध गयी। कैसे?

(ग)इस दौर में भी बचाने के लिए बहुत कुछ हैआओ मिलकर बचाएँ कविता के आधार पर इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

10.निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए2+2+2=6

आठ करोड़ प्रजा के गिड़गिड़ाकर विच्छेद न करने की प्रार्थना पर आपने जरा भी ध्यान नहीं दिया, इस समय आपकी शासनअवधि पूरी हो गई है तथापि बंगविच्छेद किए बिना घर जाना आपको पसंद नहीं है। नादिर से भी बढ़कर आपकी जिद्द है। क्या समझते हैं कि आपकी जिद्द से प्रजा के जी में दु:ख नहीं होता, आप विचारिए तो एक आदमी को आपके कहने पर पद न देने से आप नौकरी छोड़े देते हैं, इस देश के प्रजा को भी यदि कहीं जाने की जगह होती तो क्या वह नाराज होकर इसको छोड़ न जाती?

(क)पाठ और रचनाकार का नाम लिखिए?

(ख)किसने और किस बात पर ध्यान नहीं दिया?

(ग)उल्लेखित 'जिद्द' का तत्कालीन भारत पर कैसा प्रभाव पड़ा?

अथवा

दोपहर के खाने पर दबे हुए आदमी के चारों ओर बहुत भीड़ हो गई थी। लोग तरह तरह की बातें कर रहे थे। कुछ मनचले क्लको ने समस्या को खुद ही सुलझाना चाहा। वे हुकूमत के फैसले का इंतजार किए बिना पेड़ को अपने आप हटा देने का निश्चय कर रहे थे कि इतने में सुपरिंटेंडेंट फाइल लिए भागाभागा आया। बोलाहम लोग खुद इस पेड़ को नहीं हटा सकते। हमलोग व्यापार विभाग से संबंधित हैं, और यह पेड़ उसकी की समस्या है, जो षि विभाग के अधीन है। मैं इस फाइल को अर्जेण्ट मार्क करके कृषि विभाग में भेज रहा हूँ। वहाँ से उत्तर आते ही इस पेड़ को हटवा दिया जाएगा।

क()गद्यांश के मूल पाठ एवं रचनाकार के नाम लिखिए।

(ख) सुपरिटेंडेंट ने पेड़ को काटने से क्यों रोका?

(ग)'मनचले क्लर्क' किन्हें कहा गया है? उन्हें मनचला क्यों कहा गया है?

11.निम्नलिखित में से किन्हीं तीन प्रश्नों के उत्तर दीजिए3+3+3+9

(क)सत्यजित राय को बारिश का दृश्य फिल्माने में किस तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ा? उन्होनें उसका क्या समाधान निकाला?

(ख)'स्पीति' अन्य पर्वतीय स्थलों से किस प्रकार भिन्न है?

(ग)नेहरू जी भारतमाता किसेे मानते थे एवं इसकी चर्चा अक्सर किनसे किया करते थे?

(घ)'रजनी' एकांकी से हमें क्या प्रेरणा मिलती है?

12.अकेली औरत को समाज में किनकिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है – 'आलो आँधारि' की लेखिका बेबी हालदार किस हद तक उनसे लोहा लेने में सफल रही? -6

अथवा

पातरपानी, पातालपानी तथा रेजाणी पानी के बारे में आप क्या जानते हैं?

13.निम्नलिखित में से किन्हीं तीन प्रश्नों के उत्तर दीजिए–3+3+3=9,

(क)कुमार गंधर्व को शास्त्रीय गायकों की कौनसी बातें खलती हैं?

(ख)तुम दूसरी आशापूर्णा देवी बन सकती होजेठू का यह कथन रचना संसार के किस सत्य को उद्घाटित करता है?

(ग)कुँई का मुँह छोटा क्यों रखा जाता है?

(घ)आम श्रोता किस संगीत को पसंद करता है शास्त्रीय संगीत या चित्रपट संगीत को? कारण स्पष्ट कीजिए।

समूह–4

श्रीमती बीना गुप्ता

के.वि.सी.एम.ई.आर.आई. दुर्गापुर

कोलकाता संभाग (प. बं.)