Saturday, June 28, 2008

युवा मन की उड़ान


युवा मन की उड़ान:किरण सूद

प्रकाशक:राधाकृष्ण प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, जी–17, जगतपुरी, दिल्ली – 110051

    पृष्ठ संख्या:215 पृष्ठ ; मूल्य:95/– रू पहला संस्करण–2003

 

    प्रस्तुत पुस्तक खिलते यौवन के नाम समर्पित की गई है, जिसमें विकास एवं अभ्युत्थान की अनंत संभावनाएँ हैं। लेखिका ने जहाँ एक ओर अपने गहन अनुभव से जीवन यात्रा में संघर्षरत अनेक सफल युवकयुवतियों के उदाहरण देते हुए सफलता के आधारभूत तत्वों का सटीक एवं व्यावहारिक विवेचन प्रस्तुत किया है, वहीं दूसरी ओर दिग्भ्रमित एवं निराश युवा दिलों में आशा और उत्साह की नई उमंग जाग्रत करने का स्तुत्य प्रयास किया है।

वर्तमान प्रतिस्पर्धा के युग को दृष्टिगत रखते हुए पुस्तक को नौ अध्यायों में विभक्त कर विवेच्य विषय को सरल एवं प्रेरक शब्दों द्वारा बोधगभ्य बनाया गया है। प्रथम अध्याय 'जीवन लक्ष्य और महत्वाकांक्षा' के अंतर्गत मानवजीवन की महत्ता, महत्त्वाकांक्षा का औचित्य, आत्मविश्वास एवं सकारात्मक पक्ष, महत्वाकांक्षा को निर्धारित करने वाले तत्व एवं असफलता से हार न मानने के उपायों का विशद वर्णन किया गया है।

सुदृढ़ इच्छा शक्ति से अपने भाग्य को बदला जा सकता है, यह सिद्ध किया हैहस्तरेखा विशेषज्ञ कीरो ने। यौवन निराशा या आत्मदाह का समय नहीं है। यह समय हैअपने जीवन का लक्ष्य

निर्धारित करने का एवं उसके अनुसार प्रयास करने का। साधारण योग्यता होने पर भी कोई उन्नति के शिखर पर पहुँच सकता है। बशर्ते कि वह परिश्रमी एवं धैर्यवान हो। महत्वाकांक्षा जीवन के लिए सही मायने में टॉनिक है।

दूसरा अध्याय 'प्रभावी व्यक्तित्व का रहस्य' अपने कलेवर में निम्नलिखित बिन्दुओं को समेटे हुए है व्यक्तित्व विकास आधुनिकता की देन, व्यक्तित्व के मुख्य गुणाधार, साक्षात्कार का महत्व, आत्म प्रस्तुति की कला, शारीरिक सौष्ठव एवं स्वास्थ्य, वेशभूषा का चयन, वार्तालाप की कला, शिष्टाचार  एवं सुसंस्कृत व्यवहार, अभिव्यक्ति का माध्यमआँखें, भय का निराकरण, सकारात्मक रूख, क्रोध पर नियंत्रण, स्थिरता एवं सक्रियता, निजी सफाई, व्यक्तिगत आदतों में सुधार, सही निर्णय की क्षमता, ईमानदारी एवं प्रतिबद्धता, तत्परता एवं समय पर काम करने की प्रवृत्ति, जोखिम उठाना एवं साहसी होना, कार्यक्षमता बढ़ाने के प्रयास, उत्साह एवं मौलिकता, सहयोग एवं सौहार्द्र।

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यह सर्वमान्य तथ्य है कि आज सफलता एवं समृ्द्धि का मूल तत्व हैव्यक्तित्व। यदि आप मंत्री, उच्चाधिकारी, कुशल प्रशासक या धनी व्यवसायी बनना चाहते हैं तो इसके लिए जरूरी है आपके व्यक्तित्व का मूल्यांकन। सफल व्यक्तियों के जीवन का रहस्य है उनका व्यवहार कुशल होना। सफलता के लिए बु​द्धि से भी अधिक आवश्यक है तुरंत सक्रिय होना और समय पर काम करना। सभी सफल व्यक्तियों में चाहे वह गाँधी हों या मंडेला मार्क्स हों या माओ, बुद्ध हों या ईसासाहस का गुण अंतर्निहित है।

तीसरा अध्याय 'सम्प्रेषण एवं संवाद कला' अभिव्यक्ति का उकृष्ट नमूना है। मनुष्य की सफलता के लिए जरूरी है सम्प्रेषण प्रक्रिया। शाब्दिक संप्रेषण के लिए अति आवश्यक है स्पष्ट वाणी, संतुलित स्वर एवं भाषा का द्विपक्षीय ज्ञान। संवादकला का गु्रुमंत्र है : 'कम बोलें, जो कुछ भी कहें, और जहाँ तक हो सके, सदैव सच बोलें।' याद रहे, मौन ही आभूषण है सफल एवं गरिमामय व्यक्तित्व का।

चतुर्थ अध्याय 'दिशाबोध एवं एकाग्रता' लक्ष्य प्राप्ति की दिशा में मील का पत्थर है। इस अध्याय में यौवन : ऊर्जा का स्रोोत, यौवन का दुविधा, स्वयं को जानें, दिशाभ्रम, दिशानिर्देश हेतु सलाहकेन्द्र, आत्मविश्लेषण, आत्मप्रस्तुति की कला व आत्मपरिचय, शिक्षणेतर योग्यता, व्यावसायिक योग्यता, व्यक्तिगत रुचि, मानवीय गुण, संतोष प्रगति में बाधक न बने, दिशाबोध में सहायक : अन्तरात्मा की आवाज, भेड़चाल से बचें, सफलता के लिये एकाग्रता, विकास का अनवरत क्रम, धन साधन है, साध्य नहीं, जोखिम उठाने का साहस नामक विषयों पर  प्रकाश डाला है।

 

सफलता एवं समृ​द्धि का रहस्य है अपनी क्षमता का सही ज्ञान एवं परिश्रम की प्रवृत्ति तथा जोखिम उठाने का साहस। अपनी दिशा को जानने समझने वाला व्यक्ति न असफलता से भयभीत होता है और न ही सफलता मिलने पर आराम से आँखें मूँद कर बैठ जाता है।

पाँचवाँ अध्याय 'समयबोध एवं समय प्रबंधन समय के महत्त्व की अनूठी मिसाल है। इस अध्याय में समय का मूल्य पहचानें, समय पर्याप्त है, समय : सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण संसाधन, समय की पाबंदी, समय के पाबंद कैसे बने? समय का सर्वोत्तम उपयोग, समयप्रबंधन की कला, अंतिम तिथि का निर्धारण, समयसूची एवं कार्यवर्गीकरण का गंभीर विवेचन है। समय सर्वाधिक महत्वपूर्ण संसाधन है। एक पल भी व्यर्थ गँवाने का अर्थ हैसफलता के मार्ग से डिगना। प्रसिद्ध लेखक एवं इतिहासवेत्ता श्री भगवतशरण उपाध्याय अपनी समयपाबंदी के कारण सर्वत्र सराहे जाते थे।'

छठा अध्याय 'सकारात्मक सोच एवं आत्मविश्वास' सफलता प्राप्ति की दिशा को प्रशस्त करता है। इस अध्याय की विषय वस्तु में निम्नलिखित तत्त्वों का निरूपण किया गया है विचार की शक्ति, विकृति से कैसे बचें? नकारात्मक बातें न करें, शब्द ही शक्ति है, सकारात्मक से संपर्क करें, नकारात्मक को सकारात्मक में कैसे बदले? सकारात्मकता एवं सफलता, निराधार भय से बचें, सकारात्मक सोच की ओर कैसे बढ़ें ? आत्मविश्वास का बीज : स्वावलंबन, निरंतर आगे बढ़े, आत्मविश्वास: व्यक्तित्व का आधारस्तंभ।

                            

आत्म विश्वास के लिए जरूरी है स्वावलंबी होना, आत्मबल के लिए जरूरी हैअपने प्रति ईमानदारी, सकारात्मक सोच के लिए जरूरी है आत्मबल को पहचानना। कोई भी काम हो प्रबंधन, निर्देशन, अध्यापन, वकालत या लेखन, सभी कार्य क्षेत्र में सबसे पहले जिस गुण की आवश्यकता है वह है आत्मविश्वास।

सातवाँ अध्याय 'निराशा एवं कुंठा से बचाव' सार्थक जीवन जीने की कला को मुखरित करता है। इस अध्याय में सहनशक्ति का अभव, तार्किक सोच का अभाव, परिवार एवं संबंध, यथार्थ का सामना करें, जीवन सुंदर है, विकल्प की खोज, सार्थक जीवन कैसे जिएँ ? पेड़ से मैत्री करें, दैनंदिनी (डायरी) लिखें, संवाद एवं सलाह परामर्श करें, कुंठा से बचें, वस्तु स्थिति को समझें और स्वीकार करें, व्यक्तित्व की पूर्णता समझें जैसे तत्वों का समावेश है। जीने की कला का अर्थ है जो कुछ भी आपके पास है, उसका सर्वोत्तम लाभ लें और जो कुछ नहीं है, उस अभीष्ट को पाने का प्रयास करें।

आठवाँ अध्याय 'आकर्षण, प्रेम एवं आत्म नियंत्रण' संतुलित व्यवहार की शिक्षा देता है। पीढि़यों का अंतराल, बुराई से कैसे बचें ?, आकर्षण: सृजन का मूलाधार, गलत और सही की ऊहापोह, दोस्ती दबाव में न करें, मित्रता, आकर्षण एवं प्रेम, प्रेम पावन एवं प्रेरक भाव है, प्रेम एवं शारीरिक संबंध, आत्मनियंत्रण एवं संतुलन, शिष्टाचार एवं संतुलन, शिष्टाचार के आवश्यक अंग, संतुलित व्यवहार का रहस्य: सहनशक्ति, धनव्यय और संतुलन, धन व्यय करते हुए संतुलन कैसे बनाएँ ? धन एवं प्रेम का संबंध जैसे विषय इस अध्याय में समाविष्ट किए गए हैं।

याद रहे सर्वोत्तम मित्र है पुस्तक। अपने साथ सदैव अच्छी पुस्तकें लेकर चलें। खाली वक्त हो तो पुस्तक पढ़ें और पुस्तक पढ़ने के लिए वक्त निकालें।

नवाँ अध्याय 'यथार्थ का सामना' युवकों को जीवन की वास्तविकता से साक्षात्कार कराने में सक्षम है। प्रस्तुत अध्याय में सच का सामना, नशीले पदाथो को कैसे छोड़ें ? सदाचार का महत्व, अपराध जगत से बचें, यथार्थ को पहचानें, यथार्थ का सामना करें जैसे ज्वलंत पक्षों का सारगर्भित विवेचन है। निश्चय ही प्रस्तुत पुस्तक प्रत्येक युवक द्वारा पठनीय एवं संग्रहणीय है।

-कैलाश चन्द्र शर्मा

राजपत्रित अध्यापक

राष्ट्रीय मिलिट्री स्कूल अजमेर 305001

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