मार्ग को पहचान अब
शहर का हर व्यक्ति,
पहले गाँव का रहा होगा,
भाई–चारा प्रेम की ही,
कहानी दादी से सुनी होगा।
आज चोरी, हत्या की कहानी,
समाचारों में सुन रहा है।
यह असर ऐसा हुआ कि,
गाँव अब उजड़ रहा है।
गाँव की मर्यादाओं को,
और माटी की सुगंध,
भूलकर अपना रहा क्यों?
अमानवीय सड़न और दुर्गन्ध।
आज मानव स्वार्थहित,
संवेदना की बात करता,
और जीवन के लिए अब,
स्वाँग नित नया भरता।
युग अधूरा है नहीं अब,
तुम अधूरे बन रहे हो,
भावना के अतिरेक में,
क्यों अकेले बह रहे हो?
आ, लौट आ, इस जमीं पर,
उड़ नहीं ऊँची उड़ाने,
गाँव से शहर तक ही,
रास्ता तो एक जाने।
अब बचा ले मानवीय संवेदना,
क्योंकि बुढ़ापे में तुम्हें अब,
अकेले ही जीवन जीना है,
इसलिए मार्ग को पहचान अब।।
विजय चन्द प्रसाद
केन्द्रीय विद्यालय, आद्रा
पुरूलिया ( प बं )
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