Saturday, June 28, 2008

गिरती मंजि़ले

गिरती मंजि़ले:चम्पा साहनी

प्रकाशक:समय प्रकाशन आई – 1/16, शान्ति मोहन हाउस, अंसारी रोड़,

                 दरियागंज, नई दिल्ली – 110002

संस्करण:प्रथम संस्करण : 2004; पृष्ठ संख्या:104 पृष्ठ,मूल्य:85/– रू

 

     प्रकृति और मानव का एक अनन्य, न टूटने वाला रिश्ता है। प्रति जहाँ मानव का पोषण करती है, वहीं भूकंप, चक्रवात, सुनामी लहरें आदि आकर उसे अपनी विनाशलीला की गिरफ्त में भी ले लेती है। गुजरात में आया 26 जनवरी 2001 का भूकंप ऐसा ही एक प्रकृति का प्रकोप है। ऐसी विध्वंसकारी त्रासदी ने मानवों को अपनी लपेट में ले लिया। मकान न केवल धराशायी हुए, बल्कि शहर के शहर और गाँव के गाँव धरती में समा गए। प्रकृति की प्रकोपजनित विपदा की ऐसी घड़ी में न केवल पूरे देश के लोगों ने एकजुट होकर सहयोग दिया बल्कि दूसरे देशों ने भी सहानुभूति प्रकट की और सहयोग दिया। इस नाट्यालेख 'गिरती मंजि़लें' में लेखिका चम्पा साहनी ने इन्हीं घटनाओं का उल्लेख बड़े ही यथार्थरूप से किया है। इस नाट्यालेख में कुल आठ दृश्य हैं। प्रत्येक दृश्य एकदूसरे से जुड़ा हुआ एवं घटना का वर्णन करने में पूरी तरह समर्थ है।

 

इस नाट्यालेख के माध्यम से लेखिका ने भूकंप आते ही प्रकृति में कैसा, परिवर्तन हो जाता है, इसका मार्मिक चित्रण किया है। भूकंप से पूर्व पशुपक्षियों को इसका पूर्वाभास हो जाना, भूकंप के बाद की स्थिति लाखों जीवों का लाशों में परिणत हो जाना, बचे हुए लोगों का अपने सगेसंबंधियों से बिछुड़ जाने का दु:ख, विलाप और यह सोच कि हम भी क्यों नहीं मर गए, हमें ईश्वर ने क्यों बचाया, मानव का निराशावादी दृष्टिकोण झलकता है। इसके बाद भूचाल से क्षतिग्रस्त इलाकों ;जहाँ रेल और सड़क संपर्क टूट गया है, वहाँ हवाईमार्ग द्वारा वायुसेना के जवानों द्वारा राहत सामग्री पहुँचाया जाना, फिर मलबों के ढेर में फँसे लोगों को निकालने की कोशिश जिसके लिए कंक्रीट काटने वाली मशीनों, बुलडोजरों और हजारों मज़दूरों का सहारा लेना आदि घटनाओं का वर्णन है। इसके बाद भूकंप की चपेट से जख्मी लोगों का इलाज, आर्थिक सहायता एवं खाद्यान्न की व्यवस्था का वर्णन है तथा इन सबके निरीक्षण के लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री, अन्य राज्यमंत्री और केन्द्रीय सरकार के कुछ अन्य मंत्री की सहमति से आपदा प्रबंधन समिति गठित होना एवं कुछ सदस्यों को प्रतिनिधित्व करने की जिम्मेदारी सौंपना आदि घटना का उल्लेख है। अंत में सरकार द्वारा इंजीनियर, प्लैनर और बिल्डर की सहायता से एक पुनर्वास और पुननिर्माण कमेटी गठित करना, जिसका उद्देश्य है कि भविष्य में यदि भूकंप आए तो इन शहरों, गाँवों को बिना धराशायी किए ही निकल जाए। इन भूकंप विरोधी घरों की इमारतें बोलेंगी, भूचाल आया, इसने हमें हिलाया पर हम शान से खड़ी रहीं। इन मकानों की गिरती मंजि़ले नहीं होंगी, सिर ऊँचा करके खड़ी मंजि़लें होगी।

 

नाट्य तत्वों की दृष्टि से यदि देखा जाए तो यह नाट्यालेख इसकी कसौटी पर पूरी तरह खरा उतरता है। पात्रों का चयन कथावस्तु के अनुरूप है। कुल 21 पात्र हैं तथा कुछ अन्य पात्र भी हैं। पात्रों के अनुसार ही उनका चरित्र चित्रण हुआ है। सभी पात्र अपनी भूमिका का निर्वाह करने में समर्थ हैं। कथावस्तु देशकाल एवं वातावरण के अनुरूप है तथा मंचन योग्य है। भाषाशैली पात्रों के बिल्कुल अनुरूप है। व्यावहारिक हिंदी भाषा का प्रयोग है। पात्रों के संवाद बिल्कुल उनके अपने संवाद प्रतीत होते हैं। इस नाट्य का उद्देश्य भूचाल की विनाशलीला के बाद सब लोगों का एकजुट होकर भूकंप विरोधी मकान बनाना एवं भूकंप की त्रासदी से बचने की प्रेरणा देना है।

अन्तत: हम कह सकते हैं कि चम्पा साहनी की यह रंचना 'गिरती मंजि़ले' निश्चय ही भूकंप जैसी विपदाओं को थामने का प्रयास है।

 

सुनीता कुमारी

(पीजीटी हिंदी)

केवि क्रमांक–1

ए एफ एस कलाईकुण्डा  (प0बं0)

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